भौकाली बाबा की कलम से
सेलीब्रेटी इंटरव्यू- राज शर्मा
मुंबई फिल्म नगरी की सबसे खूबसूरत बात जो मुझे लगती है वो ये है कि यहां एक बार आपकी गाड़ी चल पड़ी तो फिर रूकेगी नहीं। मैंने तो बहुत देर से इंडस्ट्री में शुरुआत की लेकिन आज लगातार फिल्में कर रहा हूं और अच्छी फिल्में कर रहा हूं। पीके और बजरंगी भाईजान सरीखी बड़ी फिल्मों में काम कर चुके राज शर्मा ने भौकाली बाबा से बातचीत में ये बातें कहीं।
अपने बचपन, एक्टिंग करियर से लेकर अपने पारिवारिक उठापठक और भविष्य की तैयारियों पर राज शर्मा ने भौकाली बाबा से विस्तार से बात की। उन्होंने हर मुद्दे पर अपनी बेबाक राय रखी। उनमें से कुछ अंश आपके लिए उन्हीं की जुबानी।
तो आइए इस यात्रा में राज शर्मा के अब तक के पड़ाव पर नजर डालें।
बचपन से ही था एक्टिंग का शौक
मुझे बचपन से ही एक्टिंग का शौक था। स्कूल के समय से ही स्टेज पर जाकर परफॉर्म करना पसंद रहा। स्कूल के दौरान जब भी ड्रामा वगैरह में मौका मिलता मैं आगे रहता।

11वीं क्लास से प्रोफेशनली दिल्ली के रामलीलाओं में काम शुरू
और ये एक्टिंग का कीड़ा बड़े होने के साथ बढ़ता गया। 11वीं क्लास से तो पेशेवर रूप से दिल्ली की रामलीलाओं में रोल करने लगा। कभी लक्ष्मण, कभी हनुमान तो कभी मंत्रियों का रोल। मतलब हर तरह के रोल मैंने किए।
पापा बड़े वकील थे, चाहते थे मैं भी वकील बनूं पर मैं एवरेज स्टूडेंट था
पापा दिल्ली के बड़े वकील थे। उनका काफी नाम था। दूसरे पिताओं की तरह वे भी चाहते थे कि बेटा उनके प्रोफेशन को ज्वाइन करे। वकील बनता तो उनका बना बनाया पूरा साम्राज्य मिल गया होता। पर, मेरे भीतर तो कुछ और कीड़ा था। कुछ अलग हटकर करने का कीड़ा। पढ़ाई में तो मैं एवरेज स्टूडेंट ही था। बल्कि उससे भी कम मान लीजिए।

डीयू में पहुंचा तो एक्टिंग को लेकर और गंभीर हुआ
दिल्ली यूनिवर्सिटी के राम लाल आनंद कॉलेज से ग्रेजुएशन के दौरान एक्टिंग को लेकर गंभीरता और आई। इस दौरान हमने ड्रामेटिक सोसाइटी नाट्य कुटीर के तहत कई नाटक किए। इसी बीच में एक नाटक श्रीराम सेंटर में खेला गया बकरी। मैं इस नाटक में लीड रोल में था। और पहली बार यहां से लगा कि यार ये अच्छा है। मुझे यही करना है और एक रास्ता सा मिल गया।
अब मंडी हाउस का दौर शुरू हुआ और मैं प्रोफेशनली थिएटर से जुड़ा
इसके बाद मंडी हाउस का दौर शुरू हो गया। प्रोफेशनल रूप से मैं अब थिएटर से जुड़ गया। इसी क्रम में मेरा पड़ाव और बड़ा पड़ाव आया एक्ट 1 थिएटर ग्रुप से जुड़ने के बाद। वास्तव में आज जो एक्टिंग की ट्रेनिंग मेरे अंदर है वो एक्ट 1 की देन है।

एक्ट 1 थिएटर ग्रुप के तहत कई बड़े नामों के साथ बड़े नाटक किए
एक्ट 1 ग्रुप के साथ कई बड़े नामों के साथ काम करने का मौका मिला। यहां पीयूष मिश्रा के लिखे कई नाटकों में काम किया। इसमें वो अब भी पुकारता है, मुझे भी चांद चाहिए सहित कई नाटक किए जिसे लोगों में खूब पसंद किया गया।
...और फिर पिताजी के देहांत के साथ छूट गया नाटक
और अचानक पिताजी का देहांत हुआ और नाटक छूट गया। मुझे मजबूरी में दिल्ली से नोएडा शिफ्ट होना पड़ा। परिवार में बड़ा होने के कारण जिम्मेदारियां मुझ पर आ गईं। अब परिवार या एक्टिंग में कोई एक चुनना था। मैंने परिवार को चुना और एक्टिंग से खुद को दूर कर लिया। इस बीच कई जगह नौकरियां कीं लेकिन मन एक्टिंग की तरफ बार-बार आकर्षित होता रहा।
एक रोज मैंने फिर एक्टिंग की सोची., भाई ने दिया साथ
और इसी उधेड़बुन में मैंने फिर एक्टिंग करने की सोची। अपने परिवार से बात किया। पत्नी राजी हो गई। छोटा भाई भी राजी हो गया। मां ने भी साथ दिया और मैं फिर दिल्ली आ गया। परिवार के सपोर्ट के कारण लगा कि कुछ अब अपने मन की करूंगा।

अस्मिता थिएटर के अरविंद गौड़ ने पूछा- इस उम्र में कर पाओगे
2007 में मंडी हाउस में जाना फिर शुरू किया। इस बीच अस्मिता थिएटर के अरविंद गौड़ से मुलाकात हुई। मैंने कहा कि मैं थिएटर को फिर से शुरू करना चाहता हूं। उन्होंने कहा यार तुम अब कर पाओगे। तब मेरी उम्र 35 की हो गई थी। मैंने कहा प्रयास तो कर सकता हूं। अरविंद जी ने मुझे बहुत प्रेरित किया और आगे बढ़ाने के लिए मदद की।

2009 में किंगडम ऑफ ड्रीम्स से जुड़ा और काफी लोकप्रियता मिली
नाटकों के हब कहे जाने वाले किंगडम ऑफ ड्रीम्स में मुझे मौका मिल गया इसी बीच। 2009 में मैंने यहां शुरुआत की। यहां पर होने वाले म्यूजिक ड्रामा झुमरू में मुझे मेन हीरो के फादर का रोल मिला। और खूब प्रसिद्धि यहां से मिली। यहां काफी कुछ सीखने को मिला।
अरविंद जी के कहने पर मुंबई पहुंचा. पर कुछ दिन में ही वापिस हो लिया
अरविंद जी ने फोर्स किया और कहा कि अब तुम्हें मुंबई जाना चाहिए। तुम्हें वहां काम जरूर मिलेगा। वहां पहुंचा तो एक समुंदर सा दिखा जहां हर कोई एक्टर ही बनने पहुंचा हुआ है। कुछ रोल मिले लेकिन वैसे नहीं जैसा वास्तव में मुझे चाहिए था। मुझे लगा कि यार यहां तो मैं डिप्रेशन में चला जाऊंगा और जो भी था वो भी खत्म हो जाएगा तो मैं फिर वापिस दिल्ली आ गया।

मुंबई में काम लुक, किस्मत और कांटैक्ट से मिलते हैं
मुंबई में मैं पहली जाकर लौट आया इसका मतलब ये नहीं था कि मैं फेल हो गया था। या हार मान ली थी। मैंने वहां रहने के दौरान जो बातें सीखीं उसका मतलब ये मुझे समझ आया कि मुंबई में काम तीन चीजों पर मिलता है, आपका लुक, आपकी किस्मत और आपका इंडस्ट्री के लोगों से कॉंटैक्ट। अगर ये तीनों पर बात बन गई तो फिर आपकी बात बन गई। अगर नहीं तो फिर आप सफल नहीं हो सकते।

...और वही मेरे साथ हुआ मुंबई का रास्ता आखिर पीके के जरिए खुला
और वही मेरे साथ हुआ। अचानक मेरे एक जानने वाले आकाश डब्बास जो कि पीके की कॉस्टिंग टीम के हिस्सा थे वे दिल्ली में थे। मेरी एक मुलाकात हुई और उन्होंने कहा कि आपका ऑडिशन ले लेता हूं अगर कोई काम रहा आपके लायक तो जरूर बताऊंगा। और फिर पीके में मुझे एक रोल मिल गया। और यहां से गाड़ी चलनी शुरू हो गई।

...और पीके के बाद लगातार बड़ी फिल्में कीं और अच्छी फिल्में कीं
पीके के बाद फिल्में आती गईं। मैंने कहा न कि यहां पर एक बार गाड़ी चल पड़ी तो फिर रूकेगी नहीं। मैंने बजरंगी भाईजान,. काबिल, जुबान, द शौकीन्स, तलवार, चिल्ड्रेन ऑफ वार और मुरारी द मैड जेंटलमैन सहित कई फिल्में कीं।

ये फिल्में आने वाली हैं
बहन होगी तेरी
पोस्टर ब्वायज
हैप्पीनेस दिल फिर से
इसके अलावा कई और फिल्में कतार में हैं