ये दौर है युवा कवियों का। कविताएं बदल रही हैं। और ये काम युवा कवि बखूबी कर रह हैं। वे कविताओं के लिए बने बनाए सभी स्थापित तथाकथित ढाचाओं को तोड़कर एक नए ढाचे में अपनी कविताओं को ढाल रहे हैं। वे भाषाई रूप से उन्मुक्त हैं और यही वजह है कि उनकी कविताएं कुछ अधिक विस्तार लिए दिखती हैं।
सही मायने में अगर देखा जाए तो समाज में बदलाव के साथ कविताओं में भी बदलाव जरूरी है। अगर आज का जो समाज है उसके वास्तविक हालात को आप कविताओं में नहीं दर्शा रहे हैं और वही चांद-तारे तोड़ने की बात अपनी कविताओं में दोहरा रहे हैं तो फिर आज का युवा आपसे तालमेल नहीं बैठा पाएगा।
और फिर आप दोष आज के युवाओं को मत दीजिएगा। आज के समाज के शब्दों को, आज के युवाओं के शब्दों को अगर आप अपनी कविताओं में नहीं घोल रहे हैं। वर्तमान बदलते हालात में आपकी कविताएं उस तरह ध्यान आकर्षित नहीं कर पा रही हैं तो माफ कीजिए आप चाहें कितने भी बड़े कवि खुद को कहें लेकिन युवा आपसे नहीं जुड़ पाएगा।
खैर, तो जो बात मुझे अच्छी लगी वो ये कि इस बार लखनऊ पुस्तक मेले में नई कलम की तरफ से आयोजित कवि सम्मेलन और मुशायरे में युवा कवियों को सुनने का मौका मिला। यहां युवा कवियों की भाषाई उन्मुक्तता, वर्तमान के सरोकारों को कविताओं में जगह देने की ललक और अपनी कविताओं में बेहद सिंपल तरीके से छिपे संदेश को युवा मन तक पहुंचा देने के सामर्थ्य ने मुझे बेहद प्रभावित किया। आयोजक शशिकांत सिंह आनेह, शारबाज तालिब और पीयूष अवस्थी इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
एक खूबसूरत शुरुआत उन्होंने की है और ये कारवां आगे बढ़ते रहना चाहिए। ये इसलिए भी जरूरी है कि कविताओं को जिंदा रखना है। ये इसलिए भी जरूरी है कि आज के युवाओं के भीतर साहित्य को बो देना है। ये इसलिए भी जरूरी है कि हिंदी को, हमारी भाषाई मिठास को हमारे भीतर बरकरार रखना है।
पुस्तक मेले में आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन किया शायर शाहबाज़ तालिब ने। विशिष्ट अतिथि राजेश्वर वशिष्ठ, संध्या सिंह, डॉ० अम्बरीश 'अम्बर' ने सभी युवा कवियो को प्रोत्साहित किया और उन्हें सम्मानित किया।
ये कवि और शायर बने हिस्सा
कवि : रिज़वान खान
कवि : सचिन ' साधारण'
शायर : फहीम 'पिहानवी'
कवि : विकाश कुमार मंडल
कवयित्री : प्रतिष्ठा
शायर : अमीर फैसल
कवि : संदीप नन्दन मिश्र "हुंकार"
कवि : कुलभास्कर तिवारी
शायर : मो इमरान हुसैन
शायर : अमन "चांदपुरी"
कवयित्री : रश्मि द्विवेदी