सचिन दीक्षित की कलम से

मोदी और योगी का आना कोई संयोग नहीं है। इस स्थिति के लिए पूर्णतः जिम्मेदार इस देश का तथाकथित सेक्युलर तबक़ा है। जो पूरी बेशर्मी के साथ एक पक्ष के साथ खड़ा होकर भी खुद को निष्पक्ष दिखाने में मशगूल रहता है ।
ढूंढ़े से भी ऐसे सेक्युलर नहीं मिलते जिन्हें कश्मीरी पण्डितों से सच्ची हमदर्दी हो। जिन्हें कश्मीर में मरते हुए फौजियों से हमदर्दी हो। जिन्हें पत्थरबाजों की मानसिकता स्वीकारने का साहस हो ।
आखिर क्या वजह है जो लगातार पत्थरबाजों की सेना के रूटीन कामकाज ऑपरेशन के दरम्याँ आने पर भी , "सेक्युलर" बिरादरी उसकी आलोचना करने का साहस नहीं जुटा पाती , पत्थरबाजों के 'पेड' होने की खबरों का भी नोटिस नहीं ले पाती ??

कश्मीर से भगाए गए लोगों और देश के दूसरे हिस्सों से होते माइग्रेशन में फर्क है , पर आपको समझ नहीं आएगा , क्यूंकि समझ के नासमझ बनते को हरि (भगवान) भी नहीं समझा सकते ।
कश्मीर कश्मीरियत के लिये जल रहा है । प्लीज़ इतना बेवकूफ़ नहीं बचा है देश । कश्मीर में सारा फसाद धर्म के कारण खड़ा हुआ है । 47 के अधूरे काम को पूरा कर लेने की अभिलाषा के कारण खड़ा हुआ है , और शायद इसीलिए मेरे बगल में रहने वाले मुस्लिम को भी अक्सर ही मरते फौजी नहीं दिखाई पड़ते जो आसपास के ही गाँव से होते हैं , दीखते हैं तो सिर्फ वो कश्मीरी जिनका उनसे कोई और वास्ता नहीं सिवाय धार्मिक समानता के ।
यूपी बिहार या बाकी देश के किसी मुसलमान की कश्मीरी जनता के प्रति सद्भावना होना गलत नहीं। पर, एकतरफा हमदर्दी होना , मानवता से ज्यादा 'उम्मत' से प्रेरित लगती है ।
सबसे ज्यादा भोले तो मुझे वो लगते हैं जो मानवता के नाम पर राष्ट्रीयता की बलि मांगते फिरते हैं । जनाब अपनी अपेक्षाओं का टोकरा कहीं और ले जाइये , हमसे अब ये न होगा ,हजारों साल जिस कौम ने दुर्दांत हमलों की फेहरिश्त का सामना किया है , उससे फिर से यह कहना कि तुम अपनी सीमायें कमजोर कर दो , कुछ ज्यादा नहीं हो गया ये ???
कश्मीर पूरे देश के लिए भावना से जुड़ा है , जितना आप कुरेदोगे उसको , उसकी प्रतिक्रया उतनी ही ज्यादा होगी , देश अब दूसरा विभाजन नहीं बर्दाश्त कर सकता , आखिर अब ये हमारे अस्तित्व का सवाल है ।
सभी के लिए समान कानून हों, इस मुद्दे को भी , अजब गजब तर्कों से पाट देने की कोशिशें जारी हैं । यूनिफार्म सिविल कोड और तीन तलाक़ पर बढ़ती सरगर्मी के साथ साथ लोगों ने हिन्दू उत्तराधिकार सम्पत्ति सम्बन्धी नियमों में चूक होने , उनके लेटर एंड स्पिरिट में लागू न होने को लेकर , तमाम रोना मचा रखा है । ये सिर्फ कुतर्क देना है ।
एक तरफ बने बनाये कानूनों में , और जरूरी बदलाव लाने और उनका सही तरह से अनुपालन करवाने की बात है , तो दूसरा , एक वर्ग को भारतीय सिविलकानूनों के दायरे में लाने के बावत है । क्या इन दोनों में समानता है ??? जाहिर है , नहीं ।
आजतक हमने कभी कोई ऐसा मुस्लिम परिवार नहीं देखा जिसमें आदमी ने 4 शादियाँ की हों , तो फिर क्यों इस मुद्दे को अपने खिलाफ इस्तेमाल होने देना ???
क्यों नहीं आप इस सन्दर्भ में हिंदुओं की तरह अपने धार्मिक खाँचे से बाहर आ सकते हैं , आखिर हिंदुओं ने भी तो असीमित शादियाँ कर सकने के अपने धर्म समर्थित अधिकार को तिलांजलि दी है , क्या अग्नि देवता एक ही शादी की अनुमति देते रहे हैं ???
नहीं । हमने स्वीकारा है देश के कानून को । तो आप क्यों नहीं कर सकते ऐसा । अपनी अपनी ढपली लेकर घूमने पर , हाशिये पर जाने का खतरा तो रहेगा ही ।
देश को हिन्दुस्तान ही रहने देना है तो जिम्मेदारी सब को ही उठानी होगी । वरना यूँ ही जानवरों के नाम पर इंसान पीट पीट के मारे जाते रहेंगे और चार दिन के हल्ले के बाद , सबकुछ फिर ढाक के तीन पात !!
देश एक हो , मजबूत हो , हम सबकी यह ईमानदार कोशिश होनी चाहिए । और कोशिश दिखनी भी चाहिए । 'मोदी-योगी' कोई व्यक्ति नहीं , एक फिनॉनिमा हैं अब । अगर इस फर्जी सेक्युलरिस्ट्स तबक़े ने खुद के चालचलन में अमूल परिवर्तन नहीं किया तो उनकी कारगुजारियों से नाक तक ऊबा बहुसंख्यक वर्ग पूरे देश को भगवा रंग में रंग डालेगा ..
(सचिन दीक्षित युवा और तेज तर्रार पत्रकार हैं। देश हित से जुड़े मुद्दों पर अपनी कलम से जबरदस्त प्रहार करते हैं। ये पोस्ट उनके फेसबुक वॉल से बतौर इजाजत ली गई है। )