by Bhaukali baba
यूं तो हम जिन्हें फिल्मी हीरो कहते हैं उन्हें बेवजह ही हम हीरो कह देते हैं। क्यूंकि वास्तव में वे हीरो नहीं होते। अगर आप हीरो के वास्तविक अर्थों में जाएंगे तो आप पाएंगे कि हम और आप अभिनेताओं को हीरो मानते और कहते आ रहे हैं। लेकिन पर्दे पर दिखने वाले ज्यादातार हीरो को हम अपने रीयल लाइफ का हीरो नहीं मान सकते। क्यूंकि कहीं न कहीं उनमें वो बातें नहीं होती हैं जो वास्तव में एक हीरो में होनी चाहिए।
हीरो मतलब एक ऐसा इंसान जो हमारे लिए प्रेरणादायी हो। जो हमारे लिए प्रेरक हो। जो हमारे लिए आइडियल हो। आप पर्दे पर बेहद खूबसूरत रोल निभाएं लेकिन समाजिक जीवन में अगर आप किसी बेहतर काम को नहीं कर रहे हैं तो माफ कीजिए आप हमारे हीरो नहीं हैं। आप पर्दे के एक अभिनेता भर हैं।

हां, अगर आप समाज और देश हित में कुछ करते हैं तो फिर हमारे हीरो हैं। जैसे हाल ही में नाना पाटेकर साहेब ने किसानों की मदद की आगे बढ़कर और लगातार करते रहे हैं तो वे हमारे हीरो की तरह हैं। अक्षय कुमार ने भी ऐसा किया तो देखिए देश के लोगों ने कितना प्यार बरसाया है।
इन सबके बीच एक और हीरो है। वो सदाबहार हीरो है। आज के जितने भी पर्दे के नए उभरते हुए चेहरे हैं उनमें ये हीरो अपना एक बेहतर और जबरदस्त जगह रखता है। हमारे दिलों में इस हीरो के लिए बेहद ही खास जगह है। वजह भी है ये हीरो सिर्फ परदे का हीरो नहीं है बल्कि ये हीरो हमारे समाज का भी हीरो है।
ये हीरो हैं अभय देओल। जी हां, देओल परिवार के अभय देओल सबसे हटकर हैं। फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग और जबरदस्त पहचान रखते हैं। सामाजिक मामलों पर अभय देओल के इतना मुखर बेहद कम ही स्टार हैं। यही वजह है कि कम उम्र में भी अभय ने ये मुकाम हासिल कर लिया है कि हर कोई उन्हें पसंद की निगाह से देखता है और अपना आइडियल मानता है।

आपको बता दें कि अभय देओल ने जंगल बचाने की लड़ाई को समर्थन देने सिंगरौली तक की यात्रा उन्होंने की थी। जरा सोचिए क्या कोई आज का पर्दे का हीरो ऐसा करता है क्या। उसे क्या मतलब है जंगल-जमीन से लेकिन अभय ऐसे नहीं हैं। वे सामाजिक सरोकारों से गहरे जुड़े हुए हैं।
हाल ही में आपने देखा होगा कि अभय ने कैसे बिना कोई परवाह किए अपने उन सभी एक्टर्स के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है जो फेयरनेस क्रीम्स का विज्ञापन करते हैं।
रंगगभेद का मुद्दा उठाते हुए अभय ने लिखा , कई विज्ञापनों में बेहद चतुराई से अपना प्रोडक्ट बेचने के लिए गोरे रंग को काले रंग से ज्यादा अच्छा दिखाने की कोशिश किया जाता है। ऐड करने वाले लोग इसे नहीं समझ पाते कैसे इससे रंगभेद को बढ़ावा मिलता है।
बावजूद इसके कोई भी उनके खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता। कोई भी उनके खिलाफ जाकर उनके विज्ञापन को लेकर रंगभेद, झूठे प्रचार के आरोप नहीं लगा सकता है।
मान गए अभय। वास्तव में हमें आप जैसे ही हीरो की जरूरत है जो पर्दे के साथ समाज के भी रीयल हीरो हैं।
(दोस्तों अगर अभय देओल आपको भी पसंद हैं तो आप उनकी किसी एक फिल्म के बारे में अपनी राय लिखने की कोशिश कीजिए। हम यहां उसे प्रकाशित करेंगे। )