भौकाली बाबा की कलम से रिव्यू
भौकाली बाबा की तरफ से फिल्म को 5 में से 4 स्टार
‘अनारकली ऑफ आरा’ । ये फिल्म रीलिज हो गई है। लोग खूब पसंद कर रहे हैं। क्रिटिक्स ने भी फिल्म की खूब तारीफ की है। फिल्म देखने के बाद सचमुच ऐसा लगता है कि अविनाश दास ने फिल्म के लिए जो मेहनत की है वो सफल हो गई। अपनी पहली ही निर्देशित फिल्म में वे एक निखरे हुए, मंझे हुए निर्देशक लगे हैं तो वहीं इस फिल्म में लीड नायिका यानी स्वरा भास्कर ने अपनी अभिनय को अब एक नई ऊंचाई तक पहुंचा दिया है और ये तय है कि अब आगे उनके अभिनय की तुलना इसी फिल्म के आधार पर की जाएगी।
आइए डालते हैं फिल्म की उन पहलूओं पर नजर जो इस फिल्म को खास बना देती है।
इस फिल्म के बारे में विस्तार से बात करने से पहले सिर्फ उस डायलॉग की चर्चा जिसमें इस फिल्म की पूरी कहानी है और जो इस फिल्म को वो ऊंचाई देता है जहां से ये फिल्म लोगों के दिलों में उतर जाती है।
डायलॉग है---‘रंडी हो, रंडी से कम हो, या फिर बीवी हो… जबरदस्ती मत करिएगा’
आपको अमिताभ बच्चन की फिल्म पिंक तो याद ही होगी। और उसका डायलॉग नो मतलब नो । ये बेहद पापुलर डायलॉग रहा था फिल्म का और लोगों ने इससे बेहद जुड़ाव महसूस किया। अनारकली ऑफ आरा का ये डायलॉग का मतलब भी यही है और यही वजह है कि ये भी इसी वजह से सबकी जुबान पर चढ़ गया है। यह डायलॉग अपने आप में इतना पूर्ण है कि पूरी फिल्म की कहानी को खुद में समेटे हुए है।

फिल्म की कहानी है नाचने वाली अनारकली की। वो बिहार के आरा जिला से संबंध रखती है और काफी मशहूर है। उसके साथ रंगीला है जिसका रोल पंकज त्रिपाठी ने निभाया है। रंगीला ही उसके सारे सट्टे बुक करता है। आरा में उसकी नाच के साथ उसके जिस्म के भी तमाम दीवाने हैं।
और उसी में एक दिवाना है विवि का कुलपति। इस रोल को निभाया है संजय मिश्रा ने। लेकिन एक बार ऐसा हो जाता है कि अनारकली के आत्मसम्मान को चोट लगता है और फिर वो उसके लिए अपना संघर्ष छेड़ देती है। और उसके बाद जो होता है वो फिल्म का वो मुकाम दे देता है जहां से ये फिल्म उस श्रेणी में पहुंच जाती हैं जहां बहुत कम फिल्में खड़ी हैं।
फिल्म का क्लाइमैक्स इतना जबरदस्त है कि आप देखेंगे तो वैसा वसूल तो होगा ही जब बाहर निकलेंगे तो काफी कुछ लेकर जाएंगे अपने साथ। अपने भीतर कुछ बदलाव सा महसूस करता जाएंगे। और यही जीत है अविनाश दास की।

निर्देशन स्तर पर
पत्रकार से निर्देशन की तरफ आए अविनास दास की ये पहली फिल्म है और इस लिहाज से कुछ कमियों के बावजूद उनके निर्देशन की तारीफ करनी होगी। फिल्म में कसावट है। स्क्रिप्ट पर अपनी पकड़ मजबूत रखते हैं और इसकी एक वजह ये भी है कि उन्होंने खुद कहानी लिखी है तो इसका फायदा मिला है। फिल्म थोड़ी सी और समेट सकते थे लेकिन बावजूद इसके ये कहा जा सकता है कि अविनाश ने अपनी पहली फिल्म से बॉलीवुड में बतौर निर्देशक खुद को स्थापित कर दिया है। अब आगे उनकी राह आसान होगी।
अभिनय के स्तर पर
स्वरा भास्कर के साथ-साथ पंकज त्रिपाठी और संजय मिश्रा तीनों ही कलाकार बिहार के हैं। ऐसे में तीनों ने इसके मर्म को बखूबी पकड़ लिया है। भाषा से लेकर चाल ढाल और अभिनय में तीनों ने एक नया आयाम स्थापित किया है। खासकर स्वरा भास्कर तो अपनी पिछली फिल्मों की एक्टिंग से कहीं आगे निकल गई हैं और उन्हें अब इसी अभिनय के आधार पर आगे आंका जाएगा। इसके अलावा दूसरे कलाकार भी अपने-अपने पात्रों को बखूबी निभाए हैं और यही वजह है कि फिल्म की इतनी तारीफ हो रही है।
संगीत के स्तर पर
फिल्म का संगीत दिया है रोहित शर्मा ने। नयापन है उनके म्यूजिक में और वे प्रभावित करते हैं। रवींद्र रांधवा और डॉ.सागर के लिखे गानों को कुछ लोग अश्लील कह रहे हैं लेकिन ये वो लोग हैं जिन्हें वो भाषाई समझ या शब्दों का ज्ञान नहीं है जो वहां प्रयोग होता है, जहां की बात हो रही है। ऐसे में ये गाने पटकथा के अनुरूप हैं और इसके मायने हैं। कुल मिलकार म्यूजिक बहुत बेहतर तो नहीं लेकिन अच्छा है और गाने कर्णप्रिय हैं।
कुल मिलाकर एक बेजोड़ फिल्म। अभी देखे नहीं हैं तो जाइए देख आइए। वैसा वसूल है।