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महिला दिवस पर नायिकाओं को समर्पित फेसबुक के सबसे दिलकश कवि शायक की 12 कविताएं

Posted by  rajusingh in  राइटर्स कोना
March 07, 2017

आज महिला दिवस है। ऐसे में चारों तरफ बाते हो रही हैं महिलाओं की। उनके अधिकारों की। उनके सपनों की। उनके उड़ान की। पर, ये बातें ही हैं। जबकि हम चाहते हैं ये यथार्थ हो। इन थोथी बातों में रखा क्या है। इसीलिए हमारे लिए हर दिन महिला दिवस है। क्यूंकि हम हमारी नायिकाओं को, हमारी महिलाओं को इस समाज का सबसे मजबूत हिस्सा मानते हैं।

 

 

ऐसे में किसी और बहस की बजाए हमने इस मौके पर फेसबुक के सबसे दिलकश कवि शायक आलोक से आग्रह किया और लेकर आए उनकी 12 कविताएं। इन कविताओं को स्त्रियों से जुड़े वे सभी मुद्दे हैं जिन पर सिर्फ और सिर्फ आज तमाम सेमिनारों और गोष्ठियों में थोथी बहसें होंगी।

 

 

शायक अपनी नायिकाओं को संबोधित करते हुए इतने सरल और सहज अंदाज में वर्तमान मुद्दों को हमारे सामने रख देते हैं कि वे कविताएं हमें कहीं गहरे बेध देती हैं। स्त्रियों के सपनों, उनके प्रेम और उनकी चाहत से हमें रूबरू कराती है।

 

 

तो आइए बेजा बहस के हम सीधे चलें कविताओं तक और आनंद लें शायक आलोक की इन कविताओं का।

 

 

[सुनो परले मकान की चालीस पार औरत] 

सुनो तुम आसमान में चीन्ह लो एक तारा और करो उसे आँखों के इशारे 
कहो उसे आँखों ही से कि करती हूँ तुम्हें जहाँ भर का प्रेम 
तारे को उठा ले आया करो सिरहाने तक 
उसे देर तक चूमकर अपनी पीठ से सटा कर सोया करो 
उसे कहो वह देता रहे तुम्हें थपकियाँ 
उसकी नाक तुम्हारी गर्दन पर 
उसकी जीभ तुम्हारे कान पर हो. 

तुम चिट्ठियों में लिख दो अपना सारा प्रेम 
हलन्त-अल्पविराम-विस्मयादी में दर्ज करो मन के दुःख 
और चिट्ठियों को नदी में बहा दो. 

तुम्हारी इच्छा है कि तुम अपने बालों का रंग सुनहरा कर लो 
बदल लो तुम अपने कपडे पहनने का तरीका 
आँखों के कोर पर ही नहीं पलकों पर भी चढ़ा लो काजल का मोटा रंग
गोल बिंदी के बजाय तीर बनाया करो माथे पर. 

और सुनो तुम मंगलसूत्र को बक्से में रख दो कुछ दिन. 

तुम घर में अपना एक कोना बना लो 
हाथों में कुछ लकीरें रखो जिसे अपनी इच्छा पर मन पर बिस्तर पर 
खेंच दो कहीं भी आवश्यकतानुसार 
तुम चाहो तो गले से कुछ गुनगुना लो 
और मन हो तो कह दो कि इन दिनों मौन के प्रयोग पर हो तुम.

सुनो परले मकान की कुछ-चालीस पार औरत 
जरुरी है कि तुम कभी कभी आवारा हो जाया करो 
बेहद जरुरी कि बेबात लम्पटों की तरह भी मुस्कुराया करो.
_______________________

 

 

 

[प्रेम में नायिका] 

मेरी कहानी में एक नायिका है 

प्रेम की उम्र में ब्याह हुआ उसका 
ब्याह की उम्र में उसे माँ बनना था 
माँ बनना उसके पति की इच्छा थी 
पति ने विरासत में अपनी माँ से पायी थी यह इच्छा 
यह इच्छा बार बार जगी 
बार बार बँटकर चौथाई बची वह 
चौथाई में से भी आधा पति के दखल में रहा 

ज़िन्दगी के दो चार दस साल यूँही कटे उसके 

इन दो चार दस सालों में 
ज़िन्दगी के सब हुनर फिर सीखे उसने 
चलना सीखा फिर से 
फिर से बोलना सीखा 
पुरुष ने स्त्री को सीखाया स्त्री कैसे बनते हैं 
बदले में अपने अन्दर की स्त्री को
अपनी मर्जी से मार दिया उसने 

अब वह बत्तीस की है
मैंने मेरी नायिका में प्रेम को प्रत्यारोपित किया यहीं ... 

अब वह करती है प्रेम 
जैसे प्रेम करती हैं किशोरियाँ 
बात बात पर हँस लेती है एक लम्पट हँसी 
आईने को जीभ दिखाती कमर हिलाती है 
लिखती है चिट्ठियां तो 
लिखतीं हैं प्यार 
घर से चुरा पलकें अपनी - मिचमिचा देती है 

उसके प्रेम से जिंदा हुआ 
ईंट पत्थरों का घर
उसके प्रेम से जिंदा हुई वह 
उसके प्रेम पर बाकी दुनिया 
मर मर गयी 

हवा को खबर हुई 

बदले हुए हालात में 
'स्त्री बने रहो' के ताकीद पर 
उसे जब दफ़न रखना था प्रेम 
उसने दफ़न कर दी हैं चुप्पियाँ 
और वह प्रेम में है 

मेरी कहानी में एक नायिका है 
इस नायिका के पैर 
भूतों की तरह उलटे हैं.
_______________________

 

 

 

 

 

[गुनगुनाने दो उसे]

 

मानिए कि 
एक लड़की है जो गुनगुनाती है बेतरह 
एक लड़की जो कैरी है 
एक लड़की जिसकी जीभ में है पपीते का पीलापन 
एक लड़की जिससे आती है 
नमक के पहाड़ की खुशबू 
एक लड़की जो जीती है बेपरवाह 

अगर 
इस लड़की को एक कविता में पकड़ लाऊं 
इसे कहूँ पढ़ाई पूरा हुआ 
इसकी शादी करा दूँ पांच साल बड़े लड़के से 
दान दहेज़ में टीवी फ्रीज बक्सा दिला दूँ 

और फिर 
लड़की सुनाये कहानी तो समझौता सीखाऊं
बातें बदल पूछूं बता क्या पकाया आज 
बच्चा बनाने की सलाह दूँ 
कहूँ कि गुड़िया वही है अब तुम्हारा घर 

और आगे 
उसकी पीठ के जख्म को कहूँ उसकी फूटी किस्मत 
उसकी सास को डायन कहूँ 
वह एक बार पिटे माथा तो मैं दो बार माथा पिटूं
कोसूं उसे 
पर पुलिस में न जाकर इज्जत बचाऊं 

तो फिर 
वह जला दी गई हो कि लटका दी गई हो 
उसका बलात्कार होता हो कि 
बच्चा जनते मर जाय वह 
हमें नहीं हक़ गला फाड़ चीत्कारने का 
न ही हमें समाज संस्कृति व्यवस्था को दुत्कारने का 

तो जरुरी है 
कि मैं इस कविता में लाकर उसकी हत्या कर दूँ 
उससे पहले बचा लो उसे 
एक लड़की जो कैरी है गुनगुनाने दो उसे. 
_______________________

 

 

[स्त्री से संवाद]

 

स्त्री
मत सोचना तुम कि घबराया हुआ हूँ मैं
न ही मैं जश्न मनाने की फिराक में हूँ
उदास उबासी से परे मद्र देश की राजकुमारियों की तरह 
तुम्हारा 'लम्पट' होना
मुझे विस्मित नहीं करता 

रसोई में 'कभी आर कभी पार' की धुन पर
तुम्हारा मटकने से
मेरे लिए बनाये गई चाय की रंगत कभी नहीं बदलती 
न ही तुम्हारी मिर्ची की छौंक में शेजवान का बासीपना 
मेरे पुरुष मुंह का स्वाद बिगाड़ता है

स्त्री
तुम्हें बताऊंगा मैं कि तुम चढ़ आई हो अगली सीढ़ी
और वर्जनाएं तोडती तुम वाकई आधुनिक हो गयी हो
तुम्हारी क्रान्ति की तारीफ़ से शुरू हुआ मेरा पुरुष आख्यान
फिर तुम्हारे नर्म उभार पर आकर टिक जाये तो बेमजा मत होना तुम 
जानती तो हो तुम
इस तरीके से या उस तरीके से
तुम्हारी देह पर बात करना पसंद है मुझे

अपनी देह से पीछा छुड़ाती तुम
वर्जनाओं की दीवार लांघती तुम
आँख बंद किये कबूतरों की तरह
बिल्ली के न होने का भ्रम पाल सकती हो 

ओ प्यारी क्रांतिकारी नई स्त्री, 
तुम्हारे साथ एक नया समीकरण रचता हुआ
व्याकरण की नयी शब्दावली के साथ
बदलते परिप्रेक्ष्य में नेपथ्य की नई परिकल्पना लिए
तैयार हूँ मैं भी
शिकार के नए तरीकों की तलाश मैंने भी शुरू कर दी है 

स्त्री, तैयार हो न तुम ? 
___________

 

[दर्ज बयान]

 

यह मेरा दर्ज बयान है
मैं इन दिनों मेरे मुंह से छोड़ता हूँ सिगरेट का धुआं 
जैसे मैंने अनुत्तरित सवालों को फूंक मार उड़ा दिया हो 
मुझे मिली थी अंतिम संतुष्टि अट्ठाईस दिन पहले 
जब स्त्री सवाल पर मैंने की थी स्थानीय पुलिस पदाधिकारी से कार्रवाई की अपील 
तब से मेरे कस्बे में छः अन्य वारदातें हुईं हैं स्त्रियों के खिलाफ 
मुझे अब होने लगा है संकोच 
मुझे नहीं लगता कि मेरी दखलंदाजी से कोई फर्क पड़ता है 

मैं एक कस्बाई पत्रकार हूँ, .. मेरी उम्र तीस साल है 
मैं रहता हूँ भारत के एक कस्बे में 
आज तारीख है उनत्तीस मार्च 
यह है वर्ष दो हजार तेरह. 

_______________________

 

 

 

[सफ़ेद खांचे]

 

उसके पास एक कैलेंडर था 
और लाल काले दो स्केच पेन
काले से उन तारीखों को रंगती थी जब उसका पति उसे मारता पीटता 
गालियाँ बकता. 
लाल से वह माहवारी के दिन रंगती. 
हर महीने कुछ तारीखों के खांचे सफ़ेद बच जाते 
उन खांचों में वह अपने ईश्वर को रख प्रेम के गीत गाती 
और खूब मुस्कुराती. 
_______________________

 

 

 

[पहली उड़ान]

 

एक पहाड़ी से नीचे उतर 
एक पगडंडी जाती थी सीधे समंदर तक 
एक रोज समंदर इसी पगडंडी हो गुजर 
पहाड़ी तक चढ़ गया ! 

यह समंदर की अनैतिक कारगुजारी थी 

विरोध दर्ज करती एक मछली 
इसी पगडंडी से गुजर 
पहाड़ी पर पहुँच गई 
और फिर लौटने के बदले पहाड़ी से उड़ गई 

यही दुनिया की पहली चिड़िया की पहली उड़ान थी

_______________________

 

 

(स्त्री भ्रूण हत्या पर)

 

दुनिया की तमाम भाषाओं से इतर
तुम्हारे रुदन के विस्फोट को
तारी कर आओ
मेरे पिता के छोटे पड़ गए बनियान पर
वह जो एक सुराख है उसमें 
सूई में पिरोते जाते धागे की तरह उस सुराख में पिरो दो
मेरी मासूम ऊँगली की छुअन
कहो पिता को उतरने दे मुझे
उसके पेट के पैशाचिक कसाव के भीतर ..

कहो, उसे इन्कार है ?!

हत मा ! मेरे मुक्तिगान के पराभव से पूर्व
आओ मेरी नाभि पर कुछ स्त्री शब्द टांक दो !
_______________________

 

 

 

[स्त्री ककहरा]

 

क से कमला

क से कविता

कमला कविता पढ़

कमला कविता याद कर

कमला लक्ष्मीबाई बन .

 

आ कमला

कमला कविता से निकल

कमला घर चल

मसाला पीस

बकरी चरा

टनडेली से लौटे भाई को पानी पिला

गाय को सानी लगा

कमला .

 

कमला शादी कर

कमला बच्चा पैदा कर

कमला बूढी हो जा

कमला मर

 

ग से गौरी ग से गीत

गौरी गीत गा ..... !!

_______________________

 

[बलात्कार]


बेलगाम पहरुए 
दुपट्टे वाली रंग-हिना 
मौका-ए-वारदात पर जीवकण के एकाध अवशेष शेष न रहे. 


चलो तय हुआ 
हिना तू भी दोषी 
एकदम बराबर - ठीक उतना / जितना 
तेरा रूप

अस्तित्व. 
_______________________

 

[एक जरुरी कविता]

एक रोज़ एक कविता ज़रूरी थी रसोई मे काम कर रहीं 
तमाम पत्नियों और स्कूली बच्चों की माँओं के नाम और
उसी एक रोज़ टीवी पर आ रहा था धड़कनें 
सुलगाने वाला कोई गीत- गीत जिसमें रवानी थी 
और कवि के जेहन में ये तमाम औरतें अपनी कमर के बल 
मटक उठती हैं .. पसीने की एक बूंद है जो इन तमाम 
औरतों की पीठ के बीच की लकीर पर सरकती हुई इनकी 
कमर से फिसलती हुई फिर वाष्पित हो जाती है

पति के ऑफिस और बच्चों के स्कूल जाने के बाद घर में 
यूं ही छोड़ दी गई कोई ज़रूरी सामान तो थी नहीं वे -
वे नाच सकती थीं किसी भी आवारा धुन पर आवारा 
थिरकने संभाले, वे गुनगुना सकती थीं रोज़ ब रोज़ 
चिल्ला कर - "माय हम्प,माय हम्प,माय लवली लेडी लम्प्स"

इस एक कविता में ही ज़रूरी था इन तमाम पत्नियों और 
स्कूली बच्चों की माँओं की उन एकाध उलझी लटों को 
उनके गाल से उठाकर उनके कान के पीछे चढ़ा देना और
जब आँखें बंद किए अपनी बांहों मे खुद को समेटे वे खड़ी थीं 
देर तक बाथरूम मे प्यासे झरने के नीचे तब कवि ने रसोई 
मे रख लिया उनकी आधी पक चुकी दाल का खयाल - कवि ने बंद 
कर दिया गैस स्टोव, कूकर की तीसरी सीटी के बजते ही. 

रोज़ दोपहर कवि को तय करनी थी खुद अपनी ही भूमिका 
रोज़ दोपहर कविता में कवि को आज़ाद कर देना था इन तमाम
पत्नियों और स्कूली बच्चों की माँओं को - कवि को सिर्फ 
निरपेक्ष खड़ा नहीं रहना था उस चहारदीवारी (जो वाकई घर था)
के किसी ईशान कोने मे - कवि को ही रखना था उनकी 
हर एक छोटी बड़ी बातों का खयाल. 

एक रोज़ किसी एक पत्नी और स्कूली बच्चे की माँ ने कमरे में 
महसूस कर ली कवि की मौजूदगी, उसने मचा कर शोर इस साजिश 
को पहुंचाया तमाम पत्नियों और स्कूली बच्चों की माँओं तक -
उन्हें नहीं चाहिए उनके अकेले कमरे मे किसी मुँहबोले की भी 
उपस्थिति, उन्हे ताकीद कि अपने अकेलेपन मे भी 
आज़ादी का ख्याल ना रखे औरत. 

तमाम पत्नियाँ और स्कूली बच्चों की माँएं अकेले कमरे में भी 
जब बदलती हैं कपड़े तो भिडका देती हैं किवाड़, कम 
रखती हैं टीवी की आवाज़ कि साफ साफ घर के 
अंदर तक आती रहे बाहर के हल्के कदमों की भी आहट
कूकर मे पकाती हैं दाल ठीक उतनी ही देर जब तक 
भर कर बहने ना लगे बाथरूम की बाल्टी का पानी 
कसकर बांध लेती हैं जूड़ा 
एकाध लटों की भी संभावना को समाप्त करती
कि उनकी कमर पर कस कर बंधा होता है उनकी साड़ी का पल्लू. 

रोज़ एक बार तमाम पत्नियों और स्कूली बच्चों की माँओं के लिए 
लिखी जाने वाली ज़रूरी कविता उनके रसोई के धुएँ के साथ
हवा निष्कासित करने वाला पंखा बाहर फेंक देता है..। 
_______________________

 

(मैरिटल रेप पर)

आकाश की परती पड़ी जमीन पर 
दांत और टखने सनसना उठते हैं 
कांपती एडियों पर 
खड़ा होना कठिन
लोहे की जमीन धुंधलके में 
वह कदम भी रखता है 
तो पदचाप ठन कर बजते हैं 
पतली मोमबत्ती से जलाया जा रहा 
मोटे कागज़ सा चेहरा 
फडफडा उठता है 
शीत ऋतु का चंद्र
रोज़ सवारी पर निकलता है. 

_______________________

 

(नोट- सभी कविताओं के साथ सभी फोटो भी शायक आलोक की हैं। शायक कविताओं के साथ-साथ अपनी फोटोग्राफी से दिल जीत लेते हैं। दोनों में ही उन्हें महारथ हासिल है)


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