अभिलाष प्रणव की कलम से

एक लड़की थी, वो जादू लिखा करती थी। वो जो भी लिखती पढ़ने वाले को लगता मानो कागज में उस ही की कहानी छपी है।
दरअसल, वो अपनी कलम से आइना बना दिया करती थी, कागज पे। जो भी उसमें झाँकता उसे उसकी सूरत दिखाई देती।
पर, लड़की कभी अपना लिखा समझ नहीं पाती क्योंकि वो भीतर से पूरी खाली थी |
इक रोज़ उसके हाथ में कुछ पेंटिंग्स लगीं,। उदास चेहरों वाली पेंटिंग। इक खाली घर की पेंटिंग। रुकी हुई नदी की पेंटिंग,।
लड़की ने पता किया तो मालूम पड़ा के उसी शहर के दूसरे छोर में एक रंगरेज रहता है |

ये रंगरेज भी बहुत मशहूर था। ये बिकता था क्योंकि अपनी ब्रश से झूठ रंगता था। जहाँ लड़की के कागज़ आइना दिखाते वहीँ लड़के का कैनवास लोगों को ख़्वाबों की दुनिया में ले जाता |
लड़की को उन तस्वीरों को देख उस रंगरेज को खत लिखा और कहा के वो मिलना चाहती है। दोनों मिलने जुलने लगे, एक दूसरे को पसंद करने लगे और बहुत जल्द एक दूसरे के जीवन में एक वाजिब जगह बना ली।
अब लड़की को अपने लिखे में कुछ-कुछ खुद की भी सूरत दिखने लगी थी। पर, साथ ही उसके बनाए आईने में लड़के के नाम की गर्द भी धीरे धीरे जमा होने लगी।
उधर, लड़के की तस्वीरों में कुछ कुछ इश्क की सी झलक आने लगी। उसकी पेंटिंग में लाल रंग अलग से दिख जाता। वो बनाता दो बिछड़ते लोग और बनने के बाद ऐसा लगता मानो दो मिलते लोगों को उकेरा गया है|

लड़की धीरे धीरे खुद को इस बदलाव में ढालने लगी पर लड़के को अपनी तस्वीरों में आती सच्चाई से कोफ़्त होने लगी,। वो किसी और को अपनी तस्वीरें ना दिखाता, कोई उन पेंटिंग्स को देख लेता तो लड़के को अजीब लगता, मानो किसी ने उसे कुछ गलत करते पकड़ लिया हो।
उसे ये बदलाव रास ना आया, इस घुटन से बचने के लिए रंगरेज को इश्क या रंग में किसी एक को चुनना था, उसने रंगों को चुना और बिना किसी को खबर किए, शहर छोड़ के भाग गया |
कुछ सालों बाद लड़का इश्क को सबसे तरीके से कैनवास में उतारने वाला रंगरेज बन जाता है और लड़की के पास लिखने को बस गर्द ही गर्द बचती है |
लेखक के फेसबुक वाल से इजाजत के साथ प्रकाशित
(अभिलाष आज के जमाने के राइटर हैं। फेसबुक पर इनके लिखे का इंतजार रहता है और प्रेम कहानियां लिखने में माहिर हैं। )