नीलोत्पल मृणाल के 'डार्क हॉर्स' को पढ़ने के बाद उसे उन सभी पहलुओं पर बगैर आँके मन ही नहीं माना जो किसी भी कहानी या उपन्यास के अभिन्न अंग होते हैं ।
नीलोत्पल के खुद के ही शब्दों में " बस जो आँख से देखा , अनुभव से चुना , उसे ही गूँथकर एक कहानी बुन डाली है ....
इसे लिखने में मैंने अपनी कल्पना से कुछ भी उधार नहीं लिया " , इस रचना के हर पन्ने हर शब्द में नीलोत्पल के ये शब्द प्रतिध्वनित होते हैं । रचना एक विशेष वर्ग के माध्यम से एक पूरे देश समाज संस्कृति को जीवन्त करती चली जाती है , यथार्थ का आइना होने के कारण , रचनाकार के उद्देश्य को लेकर ज्यादा माथापच्ची की जगह ही नहीं बचती , वो स्वतः घुलता चला जाता है संवेदना में ।
उपन्यास का अकार छोटा है न बड़ा , यथोचित है । सिविल सर्विसेज या 'मदर ऑफ ऑल कम्पटीशन' के अभ्यर्थियों , उनकी सोच , पृष्ठभूमि के बहाने पूरी हिंदी पट्टी की सामन्ती सोच और उनके लिए उपलब्ध अन्य अवसरों की कमी को बखूबी रेखांकित किया गया है । न शब्द फिजूल खर्च हुए हैं न पन्ने । कथानक में कसाव है । मूल कथा अपनी अपनी मंजिलों को पा लेने की तरफ दौड़ते जा रहे अभ्यर्थियों की ही जिंदगी है , जहाँ उनके जिंदगी के अपने अपने निजी प्रसंग , प्रासंगिक कथा ।
किन्तु एक भी प्रसंग मूल कथा से अलग नहीं , सब उसे आगे बढ़ाते हुए हैं । सबसे खूबसूरत है इसकी कथावस्तु , जो पूरी तरह विश्वसनीय है । गुरु , संतोष , रायसाहब , मनमोहनी , कोचिंग संचालक समेत , प्रॉपर्टी डीलर तक का बेहद सूक्ष्म चरित्र चित्रण किया गया है । कोई भी जो दिल्ली के इस मुखर्जी नगर और उसके सेटलाइट टापुओं में रहा है , हर पात्र को खुद का देखा पायेगा । मात्र नाम ही काल्पनिक हैं । रचना में व्यक्त जीवन निरा वास्तविक । देश काल वातावरण जीवन्त होता दिखता है यहाँ ।
खासकर वातावरण के आधार पर यह रचना , बड़े बड़े नामी गिरामी रचनाओं पर भारी पड़ती है । हिंदी बेल्ट की सामाजिक आर्थिक सांस्कृतिक स्थितियों का ऐसा जाला बुन देता है लेखक कि पाठक के पास कहानी में डूबने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता । सम्वाद योजना बेमिसाल है । हर पात्र लेखक से स्वतन्त्र होता चला जाता है । व्यंग बेहद तीखे और उत्कृष्ट हैं , जो न सिर्फ चरित्रों को बल्कि स्थितियों को भी सजीव करते चले जाते हैं ।
कुल मिलाकर 'डार्क हॉर्स' कम से कम उन सभी लोगों को तो पढ़नी ही चाहिए जो खुद इस मायानगरी में अपनी उम्र खपा चुके हैं , और उन्हें भी जिन्होंने बत्रा का इस इलाके का नाम सुना है , और उन्हें तो जरूर जिन्हें इस मायानगरी का बिलकुल अंदाजा नहीं ।
इस बेहतर उपन्यास के लिए नीलोत्पल भाई तक हमारा सलाम पहुँचें।।