ब्रजेश एमपी की कलम से

हिंदी फिल्मों के माहिर दर्शक हैं ब्रजेश एमपी। फिल्में देखते हैं और उन पर अपनी प्रतिक्रिया जरूर देते हैं। और यही एक सजग और माहिर दर्शक की पहचान है और उनका उत्तरदायित्व भी।
आखिर फिल्में सिर्फ देखने के लिए ही नहीं होतीं। फिल्में होंती हैं संवाद के लिए। समाज का आईना अगर फिल्में हैं तो समाज के जो लोग उसे देख रहे हैं, उन पर उनका असर भी पड़ना है तो फिर उस पर बहस भी होनी चाहिए। उसकी अच्छाई-बुराई भी सामने आनी चाहिए। वरना आजकल के दौर में तो फिल्मों की समीक्षाएं ऐसी होने लगीं हैं कि पूछिए मत। कुछ भी मुंह उठा के लिए दिए और बन गए फिल्म समीक्षक।
ऐसे दौर में मुझे हमेशा ही एक दर्शक की फिल्म समीक्षा सबसे सटीक लगती है। क्यूंकि वो बायस्ड नहीं होता। वो जो भोगता है पस फेसबुक पर लिख देता है। ब्रजेश ने भी वही किया है।
अपने फेसबुक वॉल पर लिख दिया है। फिल्म के बारे में। आप भी पढ़ लीजिए।
लिखा है....
''रंगून खतम होते ही सिर्फ यही याद रह जाता है.. कंगना हर फिल्म के साथ और निखरती चली जा रही हैं। सैफ अली खान और शाहिद भी जमे हैं पर लगड़ा त्यागी और हैदर की बनिस्बत यहां थोड़े सुस्त लगे.। गुलजार और विशाल भारद्वाज की कंपोजिशन हमेशा की तरह बेहतरीन है।''
''विशाल की यह अब तक की सबसे महंगी फिल्म है..पर फिल्म इंटरवल के बाद ही लय पकड़ पाती है.. एंड थोड़ा ड्रामेटिक था.. पीरियड फिल्म है तो थोड़ी हिस्ट्री याद कर ले तो अच्छा होगा नहीं तो मेरे मित्र की तरह आप भी फिल्म को चार बार कोसेगें..''
''पहली फिल्म है जिसमें नार्थ - ईस्ट की प्राकृतिक छटा को इतनी खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है... इस साल तो वहां जाना बनता है भाई.। ''
तो पढ़ लिए न। अब तय कीजिए कि पहले फिल्म देखने जानी है या नार्थ ईस्ट घूमने। क्या करने जा रहे हैं पहले....।
चलिए मत बताइए लीजिए ट्रेलर फिर देख लीजिए.....
(ब्रजेश आईआईएमसी से पास आउट हैं। घूमना, पढ़ना और लिखना बेहद पसंद है। साहित्य और फिल्मों में गहरी रूचि रखते हैं। )