भौकाली बाबा की राजनीतिक टिप्पणी
यूपी विधानसभा चुनाव के साथ ही देश के फलक पर एक और जोड़ी का उदय हुआ है। यूपी के सीएम अखिलेश यादव और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी। इस जोड़ी को लोग 2014 के लोकसभा में देश के फलक पर उभरी जोड़ी से जोड़कर देख रहे हैं और तुलना करने की कोशिश कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी देश के फलक पर उभर कर सामने आई थी। इस जोड़ी ने लोकसभा चुनाव में जो जलवा कायम किया वो आज भी कायम है। और राजनीतिक गलियारों में सबसे हिट जोड़ी इसे माना जाता है। माना जाता है कि दोनों ही राजनीति के सिद्धहस्त हैं और दोनों को ही मालूम है कि चुनाव जीते कैसे जाते हैं ?

और अब विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी सामने आई है। पर, इस जोड़ी को लेकर दो तरह के चर्चे हैं। पहली तो यह कि कुछ लोग इसे मजबूरी का नाम दे रहे हैं। जाहिर है कि पहले कांग्रेस ने सपा के खिलाफ ही मोर्चा खोला। 27 साल यूपी बेहाल का नारा लगाया और अब उसी सपा के साथ हाथ में हाथ डालकर आगे बढ़ रही है। दूसरा यह कि चलिए मान लिया की मजबूरी में ही दोनों साथ आए लेकिन उनकी राजनीतिक परिपक्वता उतनी नहीं है जितनी की पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की।
बावजूद इसके राजनीतिक गलियारों में इस नए जोड़ी की चर्चा खूब है। लोग मान रहे हैं कि अगर यूपी में ये जोड़ी सफल रही तो निश्चित रूप से राष्ट्रीय फलक पर ये जोड़ी कमाल कर सकती है। ऐसा हुआ तो ये मोदी-शाह जोड़ी के मुकाबले एक नई जोड़ी होगी और उसमें संभावनाएं तलाशी जाएंगी।
अब देखना दिलचस्प होगा कि ये नई जोड़ी पुरानी और चुनावी जीत के लिए दमदार मानी जाने वाली जोड़ी के सामने कैसा परफॉर्मेंस दिखाती है और यूपी रिजल्ट इस जोड़ी का भविष्य काफी कुछ तय कर देगा।