भौकाली बाबा के साथ सेलीब्रेटी इंटरव्यू
फिल्म इंडस्ट्री में मौकों की कमी नहीं है लेकिन आपको साबित करना पड़ता है। हम जैसे न्यूकमर्स जिनका कोई गॉडफादर नहीं है, उनके लिए तो सक्सेस का यही मंत्र है। और इंडस्ट्री का ये ऊसूल आज से नहीं है। आप पीछे जाइए इरफान खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे एक्टर्स कितने वर्षों तक स्ट्रगल करते रहे लेकिन एक दौर आया जब उन्होंने खद को किरदार से बड़ा साबित कर दिया। और आज देखिए उनके पास ऑफर्स ही ऑफर्स हैं। हर बड़ा बैनर, हर बड़ा सुपरस्टार उनके साथ काम करना चाहता है।
ये कहना है कुमार वैभव का। दिल्ली से निकलर मुंबई पहुंचे वैभव ने अपनी एक्टिंग के जरिए इंडस्ट्री में अब अपने लिए एक खास जगह बना ली है। लगातार फिल्में कर रहे हैं। वेब सीरिज कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात वे अपने अब तक के सफर से संतुष्ट हैं। भौकाली बाबा से वैभव ने लंबी बातचीत की। आप भी पढ़िए उसके कुछ खास अंश...।
रात में फिल्म देखी और अगली सुबह मुंबई में था
फिल्म इंडस्ट्री में करिअर बनाने निकले वैभव का सफर भी फिल्मी रहा। कहते हैं- ये सफर फिल्मी अधिक है लेकिन है सच। दरअसल, हुआ यूं कि एक रात अनुराग कश्यप की फिल्म अगली देखी। दोस्तों के साथ फिल्म देखने गया था लेकिन लौटते वक्त मैं उनके साथ होने के बावजूद अकेला था। खुद में डूबा हुआ। खुद में सोचता हुआ कि यार मुझे तो यही करना है जो मैं देख कर आया हूं। यहां क्यूं समय बर्बाद कर रहा। और घर पहुंचा। पैसे समेटे-बैग लिया और बिना बताए घर को निकल लिया एक सफर पर जहां कोई जानने वाला नहीं था। सिवाय कुछ दोस्तों के। हालांकि बात उनसे भी नहीं हुई थी निकलने से पहले।
खुद पर भरोसा था कि जो करूंगा बेहतर करूंगा
वैभव कहते हैं- मुंबई सफर पर निकला तो सिर्फ एक चीज मेरे साथ थी, मेरा भरोसा। मुझे खुद पर यकीन था कि कुछ बेहतर करूंगा। खाली हाथ तो घर नहीं लौटूंगा। उस इंडस्ट्री में अपने लायक कुछ न कुछ तो कर ले जाऊंगा।
स्ट्रगल के दौर शुरू हुए, कई रातें सो नहीं पाया, पर खुद को टूटने नहीं दिया
8000 रुपए लेकर मुंबई पहुंचा था। पता था कि चलो प्लेटफॉर्म पर तो नहीं सोना पड़ेगा। भूखा तो नहीं रहना पड़ेगा। कुछ दिन तो काम चल ही जाएगा और फिर कुछ काम तो हाथ लग ही जाएगा। इसी भरोसे स्ट्रगल शुरू किया। पैसे खत्म होने लगे। कई रातें सो नहीं पाया। सोचता था अब आगे क्या होगा , अभी तक तो बात बनी नहीं। अच्छे-बुरे सभी दौर देखे। पर, कभी अपने हौसले को टूटने नहीं दिया।
ऑडिशन देता तो सभी तारीफ करते, फिल्में नहीं मिलतीं लेकिन प्रोत्साहन मिल जाता
लगातार ऑडिशन देने का दौर शुरू हुआ। ऑडिशन बेहतर देता था। कई बार लोग तारीफ कर देते थे-अच्छा किया है तुमने। 90 फीसदी चांस है तुम्हें मौका मिल जाएगा। मौका नहीं मिलता था लेकिन उस तारीफ से ऊर्जा मिलती थी। प्रोत्साहन मिलता था और इसी ने आगे इंडस्ट्री में मेरी राह आसान की।
ऊपरवाले, परिवारवालों का शुक्रिया, मेरे काम को जब पहचान मिली तो फिर काम मिलता ही गया
और फिर वो दौर आया जब मैं किरदारों में फिट बैठने लगा। फिल्में ऑफर होने लगीं। एक फिल्म के बाद दूसरी और फिर लोगों का विश्वास मुझ पर जमता गया। इसके लिए शुक्रगुजार हूं ऊपर वाले का भी। अपने परिवार का भी शुक्रिया जिन लोगों ने लगातार मुझे प्रोत्साहित किए रखा। मुझे अहसास कराते रहे कि मैं सही हूं।
और ये एक सच कि मुझे अपने सपनों पर अंधविश्वास है, इसलिए शायद यहां हूं
मुझे मेरे सपनों पर एक तरह से अंधविश्वास है। मुझे हमेशा लगता है कि मैं अपने सपने पूरा कर लूंगा। बल्कि मेरे सपने पूरे होने के लिए ही मुझे आते हैं। और फिर मैं बस आगे बढ़ जाता हूं। और शायद मैं कह सकता हूं कि आज यहां हूं तो उसी की वजह से हूं।
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