यूपी में भी अगर बिहार के तर्ज पर महागठबंधन तैयार होता है तो यहां भी बीजेपी को झटका लग सकता है। अगर सपा-कांग्रेस के साथ रालोद आ जाता है और ये तीनों साथ में चुनावी समर में कूदते हैं तो यह इन्हें मजबूत बनाता दिखता है। ऐसे में भाजपा के पास सीएम का कोई उम्मीदवार न होना, पीएम मोदी के अलावा कोई बड़ा और विश्वसनीय चेहरा नहीं होना और दूसरी तरफ महागठबंधन की तरफ से सीएम अखिलेश के चेहरे का पहले से तय होना महागठबंधन की मजबूती की तरफ ही इशारा करता है।
अब थोड़ा पीछे चलते हैं। बिहार चुनाव में। वहां एक ही मुद्दा बड़ा था बाहरी बनाम बिहारी। पीएम नरेंद्र मोदी को विपक्ष बाहरी बताने में सफल रहा था और वहां बीजेपी के पास स्थानीय चेहरा नहीं था। लोगों में यह मैसेज बखूबी गया और नतीजा पार्टी की हार हुई। कुछ ऐसा ही यूपी में भी हाल है। यह जरूर है कि बीजेपी अभी तक लीड कर रही है लेकिन वो केंद्र के कुछ अच्छे कदम और मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व के कारण। लेकिन फिर वही सवाल यहां भी उठने लगा है चेहरे का और जब बात इसकी आती है तो अब भी प्रदेश में पहली पसंद सीएम अखिलेश बने हुए हैं। ऐसे में अगर उनके कुछ सीट कम भी हुए तो वे गठबंधन के अन्य सहयोगियों के जरिए सरकार बना सकते हैं जैसा कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार बनी।
यह भी सच है कि सीएम अखिलेश यादव अभी तक यूपी में विकास का चेहरा बने हुए हैं। और अब चुनाव आयोग से साइकिल चिन्ह जीतने के बाद उनका मनोबल बुलंद हो गया है और वे पूरी तैयारी के साथ अब चुनाव में जुटने का ऐलान कर चुके हैं। उधर, कांग्रेस को अपनी नैया किनारे लगाने के लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।