दिल्ली से मुंबई में अपने सपनों को पूरा करने और बॉलीवुड में छा जाने की हसरत से पहुंचे जितेंद्र पवार को इंडस्ट्री में कदम रखते ही जो पहली सीख मिली वह यही थी कि यहां पर कोई किसी के भरोसे नहीं आता। अपने दमखम से आते हैं, अपने टैलेंट से कुछ नया और बेहतर रचते हैं और फिर अपनी किस्मत और मेहतन से अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं।
जितेंद्र ने जल्द ही इस सबक को अपना करिअर मंत्र मान लिया और इसका फायदा भी उन्हें मिला। दूसरों पर भरोसा करने की बजाए उन्होंने अपने भीतर की क्षमता पर भरोसा किया और जुट गए अपने मुकाम को बनाने में और आज वे बॉलीवुड में एक बेहतर युवा निर्देशक के रूप में अपनी जगह बना चुके हैं।
भौकाली बाबा से जितेंद्र ने खूब सारी बातें कीं। दिल खोलकर बोले और हर पहलू को छुआ और बेबाकी से सामने रखा जिस पर ज्यादा लोग बोलने से हिचकते हैं। तो आइए, बातचीत की बातें जितेंद्र की ही जुबानी पढ़िए...
पहले तो उन्हें धन्यवाद, जिन्होंने मेरा साथ छोड़ सबक दी कि खुद पर भरोसा करो
फिल्मी दुनिया में मेरा कोई गॉडफादर तो था नहीं। कुछ गिने-चुने लोग थे जिन्हें मैं जानता था कि वे मुंबई में हैं और मैं उन्हीं के भरोसे यहां पहुंच गया। यहां पहुंचने के बाद एक-एक कर उनसे अपने लिए मदद मांगनी शुरू की और एक-एक कर उनके नाम काटते गया कि यहां से मदद नहीं मिली। और आपको ताज्जुब होगा कि एक दिन ऐसा आया कि सबका नाम कट गया। अंतिम बंदे ने कहा-भाई यहां सबके पास अपना ही बहुत काम है। मुंबई में कोई किसी के भरोसे नहीं आता। अपना करते रहो, हां मिलते-जुलते जरूर रहना। उस समय तो बहुत गुस्सा आया। पर, आज जब खुद को यहां देखता हूं तो उन सबको धन्यवाद देना चाहता हूं क्यूंकि उनके कारण ही मैं अपने भीतर छांक सका और यहां तक पहुंच पाया।
मार्केटिंग का बंदा हूं, फिल्मों में अपने शौक से पहुंच गया
मैं तो एमबीए का स्टूडेंट रहा हूं। ये तो मेरा शौक है जो मुझे यहां तक पहुंचा दिया। और मुझे इसका कोई गिला नहीं बल्कि खुशी है कि मैंने अपने हॉबी को अपना प्रोफेशन चुना। इससे मैं कहीं ज्यादा बेहतर कर पाता हूं।
किस्मत से मिल गई पहली फिल्म, ज्यादा स्ट्रगल नहीं करना पड़ा
मुंबई में मुझे बहुत स्ट्रगल नहीं करना पड़ा। कहते हैं न इस मायानगरी में किस्मत बहुत अहम रोल निभाती है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। एक आर्टिस्ट सीता राम पांचाल जी की तबीयत खराब थी। मैंने उन्हें कुछ आयुर्वेदिक दवाएं दीं। वे ठीक हो गए और मैं उनके करीब हो गया। उन्होंने मुझे पहली फिल्म दिलाई अमां जी बोलीं। फिल्म तो रीलिज नहीं हुई लेकिन पहचान थोड़ी बहुत बन गई। बस यहीं से सिलसिला शुरू हुआ और फिर तमंचे मिली। असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम किया तो पहचान और बढ़ गई।
ट्रिप टू भानगढ़ से असली सफलता
इस बीच मैं अपनी स्क्रिप्ट पर काम करता रहता था। भानगढ़ की कहानी मेरे पास थी। प्रोड्यूसर मिल गए। ये भी किस्मत थी और मेरा टैलेंट. निकल पड़ा फिल्म बनाने। कारवां बनता गया और मुझे बेहतर कॉस्ट मिला। फिल्म बन गई। भानगढ़ पर मेरी निर्देशित इस फिल्म को खूब सराहना मिली और फिर आगे की राह और आसान हुई।
कॉमेडी सुपरस्टार लिखा तो लगा अब रफ्तार नहीं थमेगी
सबकी पसंदीदा शो कॉमेडी सुपरस्टार लिखने का मौका मिला। और अपनी लिखी स्क्रिप्ट पर लोगों को हंसते और गुदगुदाते देखा तो फिर लगा कि अब ये रफ्तार तो नहीं थमेगी। वैसे भी कॉमेडी मेरी यूएसपी है। इस पर काफी वेब सीरिज और शार्ट फिल्म्स कर रहा हूं। और ये कारवां जारी रहेगा।
रियल सिनेमा ने हम जैसे यंगस्टर्स को दिया मौका
रियल सिनेमा की समझ ने हम जैसे यंगस्टरर्स को खूब मौका दिया है। बॉलीवुड के बने –बनाए ढांचे अब ध्वस्त हुए हैं। अगर आप गांव के हैं और आपके पास वहीं की कोई रियल स्टोरी है जो टचिंग हैं तो लेकर आइए यहां फिल्म बनाने वाले तैयार हैं। ये वो विंडो है जहां से मसान, तितली जैसी फिल्में निकलतीं और सराही जाती हैं।
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