एक फिल्म इन दिनों खासी चर्चा में है। खासकर फिल्म फेस्टिवल्स में धूम मचाए है। कहानी, निर्देशन, अभिनय सहित फिल्म के हर विभाग में इस फिल्म को खूब सराहना मिल रही है। तमाम अवॉर्ड इसके नाम हो रहे हैं। इस फिल्म का नाम है 'बियाबान-द कर्स बाई वुमेन (Biyabaan-The Curse by Women'।
फिल्म साहित्यकार पंकज सुबीर की कहानी 'दो एकांत' पर बनी है और फिल्म का निर्देशन किया है जाने-माने एडिटर और स्क्रीन प्ले राइटर और डायरेक्टर कृष्ण कांत पण्ड्या ने । फिल्म को मिल रही शोहरत से खासे खुश कृष्ण कांत से जब भौकाली बाबा ने बात की तो उनके मुंह से जो पहला वाक्य फूटा वो यही था- ये फिल्म वो कृति है जो जिंदगी में कभी-कभी बनती है। और ये मेरा सौभाग्य है कि इसे मैं रच सका। इसने मुझे वो दे दिया है जो शायद सालों की मेरी तपस्या रही है।
भौकाली बाबा से लंबी बातचीत में कृष्ण कांत ने बॉलीवुड और टेलीविजन के अब तक के अपने पड़ावों और इंडस्ट्री के बनते-बिगड़ते रिश्तों पर विस्तार से बात की। उसके कुछ अंश आप भी पढ़िए।
मैं इंडस्ट्री के रिश्ते नहीं सहेज पाया, ये मेरी कमजोरी रही
कभी बेदर्दी, पनाह जैसी फिल्मों के निर्देशक, आहिस्ता-आहिस्ता के सह निर्देशक रहे कृष्ण कांत आखिर इंडस्ट्री के मेन स्ट्रीम से अचानक दूर कैसे हो गए, इस सवाल पर वे कहते हैं- मैं इंडस्ट्री के रिश्ते सहेज नहीं पाया। शायद ये मेरी बड़ी कमजोरी थी। ये रिश्तों की इंडस्ट्री है। आपके रिश्ते बेहतर हैं तो आपके लिए रास्ते आसान होते हैं। हालांकि मुझे इसकी शिकायत नहीं है लेकिन मुझे पता है कि यह बड़ी वजह रही है।
फिल्मों में लंबा ब्रेक हुआ तो टीवी की तरफ चला गया
इस इंडस्ट्री में कुछ भी तय नहीं है। जब उन्हें लगा कि फिल्मों में उन्हें अभी मुश्किल होगी। जो फिल्में तय थीं वो भी पूरी होती नहीं दिखीं तो उन्होंने पाला बदल दिया। पण्ड्या कहते हैं-फिर मैंने टीवी की तरफ रूख किया। कई धारावाहिक बनाए। पृथ्वीराज चौहान, कलर्स के लिए जय श्रीकृष्णा, चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी। सब एक से बढ़कर एक। यानी वहां भी अच्छा काम किया।
धारावाहिक अच्छा बना रहा था पर मन फिल्मों में रहा
वे स्वीकार करते हैं कि वो टीवी की तरफ चले तो गए पर उनका मन हमेशा ही बॉलीवुड में अटका रहा। हमेशा ही सोचते रहे कि बस मौका मिले और कोई अच्छी फिल्म बनाएं। यही वजह है कि धारावाहिक करते हुए वो फिल्मों के स्क्रिप्ट पर भी काम करते रहे। नई कहानियों को फॉलो करते रहे।
खुद को हमेशा चैलेंज करता रहा और उसी का नतीजा है बियाबान
मैंने हमेशा ही खुद को चैलेंज किया। चाहें जहां रहा। एडिटर के रूप में ,स्क्रिप्ट राइटर के रूप में, असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में या फिर डायरेक्टर के रूप में। हमेशा ही निखरने की कोशिश की। कुछ बेहतर करने की कोशिश की। जो भी गलतियां मैंने शुरू में कर दी थीं उन गलतियों से पार पाने की कोशिश की और उसी का नतीजा है कि आज बियाबान के जरिए मैं यहां खड़ा हूं।
'बियाबान-द कर्स बाई वुमेन' ये फिल्म मेरे लिए जूनून बन गई थी
इस फिल्म के बारे में बात करते हुए भावुक हो जाते हैं पण्ड्या। कहते हैं-पंकज की जब ये कहानी पढ़ी तभी मैं अपने भीतर कहीं गहरे एकांत में चला गया। लगा कि हां ये फिल्म है जो मेरी अब तक की तपस्या को पूर्ण करती है। और फिर ये मेरे लिए जूनून बन गई। इस फिल्म के लिए मैंने अपना सारा इगो क्रश कर दिया। कई चीजों के लिए भीख भी मांगी (मदद के रूप में इसे पढ़ें)। बस सपना था इसे पर्दे पर लाना है। और आज यह ऐसी कृति बन गई है जो कभी-कभी जीवन में बनती है।
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