सेलीब्रेटी इंटरव्यू
फिल्म अभिनेता यजुवेंद्र प्रताप सिंह से भौकाली बाबा की बातचीत
अगर आप बॉलीवुड में जगह बनाना चाहते हैं। न्यूकमर हैं और आपका कोई गॉडफादर नहीं है तो वहां जगह बनाने के लिए आपके पास सिर्फ दो विकल्प हैं। पहला आपके भीतर की जिद और दूसरा आपका टैलेंट। अगर ये दोनों मौजूद है तो फिर बॉलीवुड में आपकी राह मुश्किल नहीं है। ये कहना है एक्टर यजुवेंद्र प्रताप सिंह का। अपनी सपनों की दुनिया को पाने के लिए लखनऊ से मायानगरी पहुंचे यजुवेंद्र धीरे-धीरे ही सही अपनी एक्टिंग और जिद के जरिए बॉलीवुड में अपने लिए एक मजबूत जगह बनाते जा रहे हैं। भौकाली बाबा से यजुवेंद्र ने लंबी बातचीत की। पेश है उसके कुछ अंश, उन्हीं की जुबानी---
स्टार बिकते हैं लेकिन न्यूकमर्स के लिए भी जगह
यजुवेंद्र कहते हैं- यह सच है कि बॉलीवुड में स्टार बिकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि यहां नए चेहरे अपने लिए जगह नहीं बना पा रहे। अब मुझे ही देखिए, मेरा भी तो कोई नहीं था इस इंडस्ट्री में। लेकिन आज मैं धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहा हूं।
किस्मत कनेक्शन तो है पर दूर तक नहीं
बॉलीवुड में किस्मत का भी बड़ा रोल है। कई बार सही समय पर सही जगह मौजूद होने के कारण ऐसे लोगों का भी काम बन जाता है जिनका टैलेंट उतना नहीं जितना उसके पास था जो सही समय पर वहां पहुंच नहीं पाया। पर, अगर मौका मिला और आप साबित नहीं कर पाए तो बार-बार मौका नहीं मिलना है।
बड़े स्टार्स के कारण स्क्रीन की समस्या है
बड़े स्टार्स अपनी फिल्मों के लिए बड़ी संख्या में स्क्रीन खरीद लेते हैं, ऐसे में छोटे कलाकारों की फिल्मों के लिए मुश्किल खड़ी हो जाती है। इसलिए कई बार अच्छी फिल्म होने के बावजूद वो उतने दर्शक वर्ग तक नहीं पहुंच पाती है जहां तक उसे पहुंचना चाहिए। हालांकि वो मानते हैं कि इसके बावजूद क्रिटिक्स और दर्शकों के सराहे जाने के बाद कुछ फिल्मे बाद में मजबूत होने में सफल रहती हैं।
फिल्म फेस्टिवल्स ने हम जैसे न्यूकमर्स को उभारा
फिल्म फेस्टिवल्स के इस दौर में हम न्यूकमर्स को फायदा हुआ है। वे फिल्में जो बड़े स्टार के कारण हमारी थिएटर तक नहीं पहुंच पातीं, फिल्म फेस्टिवल्स में सराहे जाने के बाद उनके लिए एक खिड़की खुल जाती है। कुछ नहीं तो हमारा टैलेंट तो सबके सामने आ ही जाता है और हमारे करिअर के लिए वही सबसे जरूरी होता है।
बड़े स्टार नहीं बड़े किरदार के पीछे भागता हूं
बड़े स्टार के साथ स्क्रीन शेयर करूं और उसमें कहीं भीड़ में छोटा-मोटा रोल करने को मिले तो क्या फायदा है। आपकी एक्टिंग भी सही से कोई नहीं देख पाएगा। ऐसे में मैं उसके पीछे नहीं भागता। मेरी कोशिश रहती है कि स्टार बड़ा भले ही न हो लेकिन किरदार बड़ा होना चाहिए।
‘बियाबान’ और ‘मुरारी-द मैड जेंटलमैन’ से मिली पहचान
यूं तो कई फिल्में मैंने कीं। शुरुआत मॉनसून फिल्म से की। हालांकि उसमें किरदार छोटा था। लेकिन 2016 में आई फिल्में मुरारी-द मैड जेंटलमैन जिसमें पैरलल लीड काम किया और वहीं बियाबान फिल्म में लीड एक्टर के रूप में काम करने का मौका मिला। इन फिल्मों ने मुझे जबरदस्त पहचान दी। बियाबान को तो फिल्म फेस्टिवल्स मे खूब सराहना मिल रही है। मेरे काम को सराहा जा रहा है।
मैं सिर्फ पैसा कमाने नहीं आया
इंडस्ट्री में मैं सिर्फ पैसा कमाने नहीं आया हूं। मैं संजीदगी से कहानियां चुनता हूं। हर फिल्म में अलग किरदार निभाने की कोशिश रहती है और ऊपर वाले की दुआ से मुझे ऐसा करने का मौका मिल रहा है। मुझे लगता है कि आजके समय में जबकि यह इंडस्ट्री आपको एक फिट खांचे में बाँध देना चाहती है आपको संजीदा होना होगा अपने किरदार के प्रति। अगर ऐसा नहीं कर पाए तो फिर खत्म हो जाएंगे।
परिवार बोझ नहीं, परिवार मेरा प्रोत्साहन है, मेरी हिम्मत है
पारिवारिक जिम्मेदारियां मेरे लिए बोझ नहीं हैं। वो मेरा प्रोत्साहन है, मेरी हिम्मत है। मैं बहुत इमोशनल लड़का हूं। जब भी घर लौटता हूं और बेटे का खिलखिलता चेहरा दिख जाता है, पूरी दुनिया मुझे वहां मिल जाती है। सारी थकान, बाहर हुए अनबन सब भूल जाता हूं। मुझे लगता है कि मेरे आगे बढ़ने में मेरा परिवार अहम रोल निभाता है। यही वजह है कि मैं हर एक-दो महीने में अपने गांव निकल जाता हूं। मम्मी-पापा के पास, गांव के लोगों के पास।
फिल्मी दुनिया में यजुवेंद्र का सफर
यजुवेंद्र ने मेरठ के आईएचएम से होटल मैनेजमेंट की डिग्री ली लेकिन मन उनका एक्टिंग में रमा रहा। इसलिए कुछ दिन नौकरी करने के बाद उसे छोड़कर लखनऊ लौट आए और यहां थिएटर ज्वाइन कर लिया। यहां से थिएटर करने के बाद 2012 में फिल्मों में काम करने के लिए मुंबई पहुंचे। वहां स्ट्रगल के दिनों में उन्होंने एक थिएटर ग्रुप बनाया। अचानक इसी बीच फेसबकु पर उनकी फोटो देखकर निर्देशक संदीपन विमलकांत नागर ने उन्हें अपनी फिल्म ‘रंगमहल-एक प्रेम कथा’ का ऑफर दिया। हालांकि ये फिल्म रीलीज नहीं हो पाई। यजुवेंद्र को दुख तो हुआ लेकिन वे हिम्मत नहीं हारे और फिर ‘मॉनसून’ के बाद फिल्में मिलती गईं। अब तक पांच फिल्मों में काम कर चुके हैं और कई फिल्में उनके पास हैं। फिलहाल अभी वे सेक्स एजुकेशन पर आधारित एक फिल्म ‘थारे से ना हो पाएगा’ कर रहे हैं।